बड़ा मीठा है मेरा दर्द मगर मैं पी नहीं सकता।
ज़हर है वह मगर जिसको पिये बिन जी नहीं सकता॥
कोई कहते हैं जिन्दी है बहारें जिन्दगानी की।
बहुत हमने अदाएं भी बुलाई थी जवानी की।
कभी सपनों में आई हो मगर मैं छू नहीं सकता॥
बड़ा मीठा है...
उड़ाने ली हैं मैंने तो गगन की घाटियों में भी।
पांखें हो चुकी हैं क्लान्त सिर्फ दो मंजिलों में ही।
धधकती आग है दिल में मगर मैं जल नहीं सकता॥
बड़ा मीठा है...
हारा हूं थका हूं मैं संभालो कोई बांहों में
कोई मोती न गिर जाए अरे आंखों की राहों में
जमाना है बड़ा बेरुख मगर मैं मर नहीं सकता॥
बड़ा मीठा है...
नया मेरा बगीचा रे उमीदें लहलहाती है।
हसीं दुनिया बिना इसके न मुझको रंच भाती है।
लगी जलने शमां भी अब, पतंगा रह नहीं सकता॥
बड़ा मीठा है...
बुलाता खून मुझे अपना सदियों बाद सिमटने को।
उठती हूक थी गहरी उमड़ी है भभकने को।
जो थाती कौम की पाई उसे मैं खो नहीं सकता॥
बड़ा मीठा है...
- पूज्य श्री तन सिंह जी
Monday, June 22, 2009
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