मरुभूमि के मध्य खिला यह कमल निराला रे
कमल निराला रे
अरावली श्रेणी से फैला सूर्य उजाला रे
सूर्य उजाला रे
जागृति का भी जोश रमा है, प्रात: की सुन्दर सुषमा है
गुण ग्राहक भौरों का निकला दल मतवाला रे
निकला दल मतवाला रे
दल के दल भौरें आते है, अपनापन बिसरा जाते है
मस्त बने है सब पीकर जीवन हाला रे जीवन हाला रे
ताना कस कोई कहता है, अली कली में क्यों फंसता है
अली बिचारा क्या गुण जाने खुद तो काला रे खुद तो काला रे
भंवरा भी प्रत्युतर देता, मरुधर है पानी ना होता
फिर भी खिला अरे बावले, कमल निराला रे कमल निराला रे
ध्रुव तारा तारों से कहता, अरावली भुकण से कहता
मान सरोवर कहता हंसो, मोती चुगना रे मोती चुगना रे
चुग प्राग की अतुल राशि ले, मरुवन को जाता भंवरा ले
भारतवर्ष इसी से होगा कलियों वाला रे कलियों वाला रे
- स्व।श्री तन सिंह जी
Monday, June 22, 2009
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