Wednesday, June 24, 2009

लो उतर पड़ी नैया

लो उतर पड़ी नैया देखे कौन डुबाते है
इस सरिता की छाती हम चीरते जाते है

तट पर साथी दिखते, है हाथो को मलते
जो साथ में रहते है, वे साथी कहाते है
जो दूर खड़े देखे, वे दर्शक होते है


ये जल की गहराई, ये तूफानी आंधी,
ये निर्बल पतवारें ये नेत्र भी झपते है
नैया डगमग करती तब दर्शक हंसते है

यह आंधी क्यों आती? यह लहरें क्यों उठती ?
आती है तो आवै हम बढ़ते जाते है
रे सुनो! चुनौती इनको देखें क्या कर लेते है

अब मेल हुआ देखो, नैया की गति देखो,
रे प्रेम भाव से हम बढ़ते जाते है
आए रम्य किनारे बल और लगाते है

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