आराम कहाँ जब जीवन में अरमान अधूरे रह जाते
दिल की धड़कन शेष रहे हाथों के तोते उड़ जाते
तिल-तिल कर तन की त्याग तपस्या का अमृत संचय करते
अमिय भरे रस कुम्भ कभी यदि माया की ठोकर खाते
सागर में सीपें खोज-खोज माला में मोती पोये थे
पर हाय ! अचानक टूट पड़े यदि प्रेम तंतु जब पहनाते
घोर अँधेरी रात्रि में था दीप जला टिम-टिम करता
अंधेर हुआ जब बह निकला नैराश्य पवन मग में चलते
निर्जीव अँगुलियों के चलते स्वर साधक बनना सीखा था
मादक वीणा के टूट चुके हों तार अभागे हा ! बजते
बचपन में बाहें डाल चले सोचा था साथी है जग में
दो कदम चले फिर बिछुड़ गए एकाकी को आराम कहाँ ?
श्री तन सिंह ,बाड़मेर ११ अगस्त १९४९
स्वागत है।
ReplyDeleteआशा है कि आप क्षात्र धर्म के ज्ञान पक्ष को भी उजागर करेंगें, जिसकी परम्परा में विश्वामित्र,जनक, कृष्ण और बुद्ध आदि आते हैं।
word verification रखा हो तो हटा दें। कष्टकारी है।
achhi........bahut hi achhi kavita...
ReplyDeleteye aag bani rahe.............
badhai !
jandar. narayan narayan
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