Monday, June 22, 2009

जाति के उत्थान पतन की

मै जाति के उत्थान पतन की घडियां देख रहा हूँ
मै घडियां देख रहा हूँ

मै देख रहा प्रात: की किरणे फ़ैल रही दिश-दिश में
मै देख रहा जागृत जग को उत्साह भरा है उसमे
मै मुरझाए निज फूलों की पंखुडियां देख रहा हूँ
पंखुडियां देख रहा हूँ

दुनिया ने पर्वत पार किए है लांघी विशाल नदियाँ,
फहराते विजय पताका अपनी हो गई उनको सदियाँ
मै अपनी निर्बल जाति की आँखडियां देख रहा हूँ
आँखडियां देख रहा हूँ

दुष्टों के हाथों पड़कर मेरी संस्कृति है अकुलाती,
अहंभाव के बीच वीरता पड़ी है बिलबिलाती
तब ही तो सडियल लोगो की हेकडियां देख रहा हूँ
हेकडियां देख रहा हूँ

युवक संघ है आया सबको एक सूत्र में लाने,
गत वैभव की शंखध्वनी को घर-घर पहुचाने
मै अंधरे में आशा की कुछ लड़ियाँ देख रहा हूँ
लड़ियाँ देख रहा हूँ

आराम दक्ष और खेलकूद यह बौद्धिक चर्चा कैसी,
लगी चोट झर रहा पसीना फिर मुस्काने कैसी
अरे प्रेमभाव की कुछ कुछ तो फुलझडियाँ देख रहा हूँ
फुलझडियाँ देख रहा हूँ
-स्व।श्री तनसिंहजी

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