क्षात्र धर्म की शान रखाने वीर जाति फिर जाग उठे,
हल्दी घाटी के नालो से हर-हर की हुँकार उठे
जग रक्षक का जयकार उठे
परशुराम ने कई बार जग क्षत्रिय विहीन करवाया
यवनों ने गद्दारों ने फिर फूट डालकर कटवाया
अंग्रेजों ने आकर हमको हाँ हुजुर ही सिखलाया
फिर भी जब-जब पड़ी भीड़ तब जौहर शाका दिखलाया
बुझी हुई उस चिनगारी से विप्लव की सी आग उठे
जड़ चेतन सब जाग उठे
कुतुबुद्दीन की ऊँची अट्टा खड़ी-खड़ी क्या बता रही
ये लाल किले ये मोती मस्जिद हाय -हाय क्या सुना रही
काबुल में जाकर देखो कबरें अब भी सिसक रही
नव्वाबों की संताने अब तांगे इक्के चला रही
म्यानों में तलवारें तडफे शत्रु को ललकार उठे
संघ मन्त्र गुंजार उठे
लहरें बन शत्रु जब आए चट्टानें बन भिडे हमीं
प्यासी भारत माता के हित खूं के बादल बने हमीं
इस समाज की ढाल बने हम , शत्रु दल के काल हमीं
दीवाने बन ऊंटाले में हमने ही तो फाग रमी
गली-गली में एक बार वही रंग सब घोल उठे
होली की भी ज्वाल उठे
- स्व।श्री तन सिंह
Monday, June 22, 2009
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