Friday, June 5, 2009

बलि पथ के सुंदर प्राण



बलि पथ के सुंदर प्राण

बलि होना धर्म तुम्हारा,

जीवन हित क्यों पय पान


आज खडा तू मंदिर आगे,

देव पुरुष के है भाग्य जागे

टूट रहे है जग के धागे

मत मांग अभय वरदान १

बलि पथ के सुंदर प्राण


जीवन है कर्तव्य की कहानी,

चंद दिनों की मस्त जवानी

मर कर चख ले रे अज्ञानी

कर ले पुरे अरमान २

बलि पथ के सुंदर प्राण


दीपक की बलि है जलने में,

फूलों की बलि है खिलने में

बलि होता स्वच्छ सलिल झरने में

कह बलिदान चाहे कल्याण ३

बलि पथ के सुंदर प्राण


वीर पूंग्वो की धरनी ,

प्रेममई भारत जननी पर

यज्ञ भूमि दुःख ताप हरनि पर

अब जलने दो श्मशान ४

बलि पथ के सुंदर प्राण


२४ मार्च १९५०

No comments:

Post a Comment