Monday, June 22, 2009

क्षात्र धर्म के पुनरोदय से

क्षात्र धर्म के पुनरोदय से अग जग में उजियारा हो
ऐसा संघ हमारा हो

उतर से जब देश धर्म पर काले बदल घिर आए
तैमूर लंग गौरी नादिर से अत्याचारी घुस आए
उन प्यासों के पीने के हित खून भरे खप्पर लाए
सोमनाथ पानीपत गूंजे जब हमने ललकारा हो
ऐसा संघ हमारा हो

औरंग ने जसवंतसिंह को काबुल में था मरवाया
दुर्गा ने तीखे भालों से मुग़ल तख्त को थर्राया
मालदेव से मुंह की खाकर शेरशाह था घबराया
जब-जब कुचला गया धर्म तब हमने ही फुफकारा हो
ऐसा संघ हमारा हो


कूटनीति से अकबर ने शेरों को भेड़े बनवाई
मेवाड़ सिंह के सिंहनाद से अरावली भी गुर्राई
केशरिया फहरा भूमि को लाल रंग से रंगवाई
हल्दी घाटी के शस्त्रों का फिर एक बार झंकारा हो
ऐसा संघ हमारा हो


चित्तौड़ दुर्ग की बुझी राख में बीती एक कहानी है
जलते दीपक में जौहर की वीरों याद पुरानी है
चूल्हों की अग्नि में देखो पद्मावती महारानी है
हृदय-हृदय में आग उठे फिर घर-घर में जयकारा हो
ऐसा संघ हमारा हो

जब शक्ति थी जगह जगह तब शत्रु को ललकारा था
हाथों में तलवारे लेकर वक्ष फुला हुंकारा था
जननी के चरणों पर अपना सुख दुःख सारा वारा था
भूली संस्कृति की उर में बहती पावन धारा हो
ऐसा संघ हमारा हो


संघ मन्त्र क्षत्रिय जाति की रग-रग में संचय करने
युवा हृदय की तड़पन ले हम आज चले जग जय करने
दावानल की अग्नि बढे जब सत्य न्याय का क्षय करने
उस दावा से धर्म बचाने आगे कदम हमारा हो
ऐसा संघ हमारा हो

अपनी आत्म ज्योति की लौ से क्षात्र धर्म का दीप जले
पथ से विचलित राजपूत को अपना खोया मार्ग मिले
निष्ठ तपस्वी के समान हम संघ कार्य को किए चले
अपने नेता की आज्ञा पर मरना ध्येय हमारा हो
ऐसा संघ हमारा हो

-स्व.श्री तनसिंहजी

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